रजनीश कुमार, गढ़वा
स्थानीय जीएन कान्वेंट स्कूल में देश की राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ के मौके पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें छात्र-छात्राओं एवं शिक्षक शिक्षिकाओं ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। एसेम्बली में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत विद्यालय के निदेशक सह शिक्षाविद मदन प्रसाद केशरी, उपप्राचार्य बसंत ठाकुर द्वारा भारत माता के चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया गया। उपस्थित छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए विद्यालय के निदेशक मदन प्रसाद केशरी ने कहा कि भारत का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम न केवल एक गीत है बल्कि यह हमारी राष्ट्रीयता और संस्कृति का प्रतीक है। यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक प्रेरणा स्रोत था और आज भी हर भारतीय के दिल में एक विशेष स्थान और आस्था रखता है।राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम हमारे देश की गरिमा और उसकी महानता का उदघोष करता है। देश की सुंदरता और शक्ति का बखान करता है और हमें हमारी मातृभूमि के प्रति गर्व और समर्पण की भावना से ओत प्रोत कर देता है।वंदे मातरम पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंग दर्शन में 7 नवंबर 1875 को प्रकाशित हुई थी। बाद में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इसे अपने अमर उपन्यास आनंद मठ में संकलित किया जो 1882 में प्रकाशित हुई।रविंद्र नाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्व किया था। इस राष्ट्रीय गीत को गाना सभी भारतीयों के लिए एकता, बलिदान और भक्ति के शाश्वत संदेश को फिर से दोहराने का अवसर है जो वंदे मातरम में समाहित है। इस स्तुति देशगान का एक कविता से राष्ट्रीय गीत बनने तक का सफर औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत की सामूहिक जागृति का उदाहरण है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने आपको समर्पित कर चुके नेताओं,छात्रों और क्रांतिकारियों ने इसके छंदों से प्रेरणा ली और इसे राजनीतिक सभाओं, प्रदर्शनों और जेलजाने से पहले गाया जाने लगा।इस रचना ने न केवल विरोध के कामों को प्रेरित किया बल्कि आंदोलन में सांस्कृतिक गौरव और आध्यात्मिक जोश भी भरा,जिससे भारत के स्वतंत्रता संग्राम की राह के लिए भावनात्मक आधार तैयार हुआ। 19वीं साड़ी के आखिर और 20वीं सदी की शुरुआत में बढ़ते भारतीय राष्ट्रवाद का नारा बन गया- वंदे मातरम। कार्यक्रम को सफल बनाने में शिक्षक वीरेंद्र शाह,कृष्ण कुमार, मुकेश कुमार, विकास कुमार,नीराशर्मा,सरिता दुबे,नीलम कुमारी, सुनीता कुमारी, चंदा कुमारी, शिवानी कुमारी, वर्षा कुमारी, ऋषभ कुमार, पूजा प्रकाश, संतोष प्रसाद आदि की भूमिका सराहनीय रही।












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